Thursday, August 4, 2016

अमित शाह जेल कि चार दिवारी में से भी काफी आगे का सोंचते थे।

नरेन्द्र मोदी जब गुजरात के मुख्यमंत्री थे, तब एक आँख में अमित शाह रहते थे तो वही दूसरी आँख में आनंदीबहन रहती थी. आनंदीबेन ओर अमित शाह के बिच में अह्म का टकराना नया ओर निजी भी नही रहा।  दोनो जब भी मौका मिले  एक दूसरे के हिसाब को पुरा करने का काम करने में भी कुछ बाकी नही रखते थे. मोदी भी एक दूसरे के दुशमनो को साथ जोड अपना काम होशियारी के साथ निकाल ते रहे। मेने बहोत सारे राजनेताओ को देखा हे लेकिन अमित शाह दूसरे राजनेताओ से काफी अगल हे. जहा दूसरे राजनेता कि सोच खत्म होती हे वही अमित शाह कि सोच शुरु होती हे।अमित शाह के लिये कहा जाता हे कि वो वर्तमान तो ठीक लेकिन भविष्य में आने वाले १० साल में क्या होने वाला हे उसके मुताबिक आज का निर्णय लेते हे। २०१० में शौहराबुद्दीन फर्जी ऐन्काउन्ट केस में साबरमती जेल के महेमान बने। शाह ने तिलक कुटीर से जो राजनेतीक गेम खेली वो आनंदीबेन कि कल्पना के बहार थी। 

अमित शाह जब जेल में थे, उस वक्त म्युनिसिपल कोर्पोरेशन का चुनाव था. सब से ज्यादा डर उस वक्त अमित शाह के खेमे में उनके समर्थक में था. वजह अहमदाबाद म्युनिसिपल कोर्पोरेशन के प्रभारी मंत्री आनंदीबेन थे, स्वाभाविक तौर पर शाह जेल में थे, ओर बहन प्रभारी थे। अमित शाह के समर्थक का हिसाब चुकते करने का एक अच्छा मौका आनंदीबेन के पास था। भाजपा के नेता अन्य विपक्ष के साथ साथ खुदी के नेताओ के लिये अंदरुनी तौर पर भी काफी जहर रखते हे. जो उनके साथ नही हे वो उनके सामने हे ऐसा दोनो ही मानते हे। 

शाह के समर्थक को डर था कि, कोर्पोरेशन के चुनाव में बहेन उनकी टिकट काट देगी, उस वक्त कि राजनिती को भापने पर यही विकल्प बचता था कि बहेन को मिलना जरुरी था. अमित शाह के समर्थक बहेन के विश्वासु नेता को मिलकर बहेन को मिलने पहेंचे, उम्मीद थी वेसे ही हुआ, बहेन ने पहेले भुतकाल में हुए, हर उस वाकिये को याद करवाया, जो उनके साथ अमित शाह के इसारे पर जाहेरसभा में अनदेखी कि गयी। वहा से लकेर हर बात का ताना मारा गया। बहेन को मिलने गये अमित शाह के समर्थको के पास माफी के अलावा कोई रास्ता नही बचा था। 

थोडी दैर में बहेन का गुस्सा शांत हो गया, फीर आनंदीबेन के समर्थक ने बहेन को कहा कि, बहन बडा मन रखते हुए वो अमित शाह के समर्थक होने कि सजा उन्हे ना दे, उनहे टिकट देने में अन्याय ना हो ऐसा करने के लिये बिनंती कि। आनंदीबहेन  कि सोच काफी साफ थी, उनहो ने कहा कि अमित के समर्थको को टिकट मिले इस के लिये में भाजपा में किसी को भी कहुंगी नही, लेकिन अगर टिकट मिलती होगी तो में किसी को मना भी नही करुंगी... साथ ही बहन ने अमित के समर्थको को रास्ता दिखाते हुए कहा कि अमित शाह जो सिफारीश लेटर भेजे उस में आपका नाम हो ऐसा बता देना। 

आखीरकार सब कुछ ठीक हुआ,  उसी उम्मीद में अमित शाह के समर्थक खुश होते हुए आनंदीबेन के चेम्बर के बहार निकले, दो दिन बाद समर्थक जेल पहेंचे ओर अमित शाह को भी मिलकर आये, साथ ही उनहे चुनाव में टिकट मिले इसके लिये भी बिंनती कर दि। भापजा के नेताओ ने तैय कि तारीख पर  उम्मीदवार के नाम कि धोषना कि, जीस में एक भी अमित शाह के समर्थ का नाम नही था, जो लोग बहेन को मिलने गये थे उनका भी नाम नही था। सब सदमे में थे, कि आनंदीबेन के आस्वस्थ करने के बावजूद भी टिकट नही मिली। ओर अमित के सभी समर्थको का पत्ता कट गया। 

आनंदीबेन के विश्वासु नेता जो अमित शाह के समर्थक को आनंदी बेन से मिलेने लेकर गये थे, उनहे भी काफी आश्चर्य हुआ। अमित शाह के समर्थक आनंदीबेन के विश्वासु के पास पहेंचे. काफी सोचने के बाद उनहो ने आनंदीबेन को फोन मिलाया, उनहो ने बहेन को कहा में जीन अमित शाह के समर्थ को लेकर आपके पास आया था उनहे टिकट नही मिला.... बहन ने बिलकुल शांति से जवाब दिया कि देखिया मेंने किसी टिकट नही काटी हे, लेकिन आप एक काम किजीये अमित शाह ने जो उम्मीदवार कि लिस्ट भेजी थी उसे देखले, में शंकर चौधरी जो कि हाल में आनंदीबेन सरकार में मंत्री हे उनसे मिल लिजीये फोन कर देती हुं....


शंकर चौधरी को उस वक्त कोर्पोरेशन के चुनाव में संगठन का काम सोंपा था, आनंदीबेन के भरोसेमंद नेता के पास अमीत शाह के समर्थक पहेंचे, तब तक बहेन ने शंकर चौधरी को फोन कर दिया था, अमित शाह के समर्थक जेसे ही शंकर चौधरी के पास पहेंचे, उन्हो ने अमित शाह के जरीये भेजी गयी लिस्ट दिखायी, अमित शाह के जरीये भेजी गयी लिस्ट को देखते हुए अमित शाह के समर्थ के चहेरा का नुर उड गया, इस लिस्ट में खुद के एक भी समर्थक का नाम नही था, सभी नये चहेरे के नाम अमित शाह ने अपने सिफारीश पत्र में लिखे थे। 

कोई भी नेता अपने समर्थक को ही ना गीने ऐसा कभी नही हो सकता, लेकिन एेसा केसे हुआ अगर ये सोचे तो, अमित शाह के दिमाग में चल रहे राजनेतिक रमत को समजना बहोत जरुरी हे, अमित शाह माहीर राजनेतिक हे, उनको पता था कि वो खुद जेल में हे, अगर उनके समर्थको को टिकट मिलता हे तो उनको लगेगा कि, अमितभाई के बिना भी उनहे टिकट मिल सकती हे, अगर ऐसी सोच भी उनहे आती हे तो उनके लिये वफादारी बदलने में वक्त नही लेगेगा। क्यु की राजनिती ओर वफादारी को नीस्बत नही होता हे। लेकिन अगर  टिकट कटेगी तो उनको पहेला शक आनंदीबेन पर जायेगा, ओर बहन के लिये उनका गुस्सा ओर भडकेगा। आज नही तो कल जब जेल के बहार आ उंगा तो हमारे समर्थक हमारे ही रहेंगे। 
 
( यह पोस्ट गुजराती में लीख चुका हुं और काफी लोगोने ईसी पढी भी हे, कुछ दोस्तो का सुजाव था की वे गुजराती नहीं जानते अगर हिन्दी में उन्हे कुछ पोस्ट मील जाय तो बहेतर रहेगा,  यह पहली पोस्ट है प्रायोगीक तौर पे, अगर अगर हिन्दी पढने वाला की संख्या अधिक होंगी तो हिन्दी  पोस्ट का प्रयास कीया जायेगा धन्यावाद)

3 comments:

  1. Dada Modi Hindi boltathata atle Delhi pahochya tame ? 😄

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  2. Modi na Hindi bhashi Bhakto ne khabar pade te mate jaruri chhe

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  3. क्या बात है प्रशांतभाई आपकी बेबाक लेखनी के लिए आप साधुवाद के पात्र हैं।अमितशाह के खुराफाती दिमाग का एक्स-रे आपने दिखाकर उनकी सोच की रेंज और राजनीति के एक झुझारु खिलाड़ी का सबुत पेश किया है।

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